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शहर को रवाना हो गए
 ए-जिदंगी
आराम चाहिए
मेरा आज
जल है तो कल है
मालूम न था
गुजरा जमाना
लाखो दीप
जख़्म मजदूर के
अनसुनी शिकायतें
महोब्बत करलूं
कमजर्फ जज
छोड़ दिया
जिस्म
हाल-ए-जिंदगी
मंदिर जाने वो भी लगी है
मंजिल
हिन्दी से सीखा
माँ कैसे रही होगी
बापू से बड़ा