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मालूम न था

इस तरह से ये जिंदगी रूपी रेत
हाथ से फिसल जायेगा मालूम न था,,

राजनीति में आकर ये इंसान इतना बदल जायेगा
मालूम न था,,

बात-बात पर ये हिन्दू-मुस्लिम चिल्लायेगा
मालूम न था,,

रोजगार के नाम पर रोजगार नहीं
इन सत्ता धारियों को लॉकडाउन के सिवा और कोई काम नहीं,
ये इतना हमें तडपायेगा मालूम न था,

हर ऐतिहासिक चीज को बेच खायेगा मालूम न था,
बदलते मौसम के साथ बदल जायेगा
मंहगाई को पल-पल बढायेगा मालूम न था,,

जो देता है दाना-पानी हमें 
उसको इस तरह सडकों पर ले आयेगा मालूम न था,

मेरे महकते गुलिस्तान को 
इस प्यारे हिन्दूस्तान को वो सण भर में कंगाल कर जायेगा मालूम न था

ए-दीप हमें ये सब कहाँ मालूम था,,
कुछ इस तरह से ये जिंदगी रूपी रेत
हाथ से फिसल जायेगा मालूम न था,,

~कुलदीप सभ्रवाल

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