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खुदा को भुला दिया

खुदा को भुला दिया

खुदा-को-भुला-दिया 

बेपनाह मोहब्बत को भुला दिया उसने,
एक राह चलते मुसाफ़िर को 
घर का पता बता दिया उसने,

अब फिक्र ना रही उसे अपनी लाज कि,
न जाने क्यूँ खुद के साथ धोखा किया उसने,

हाथों में हाथ डाल कर चलने लगी थी,
जब इक पल दूर हुई तो 
जिस्म से हाथ ही अलग करवा दिया उसने,

सोच कर बडा अजीब लगता है,
एक बेसहारा को देकर सहारा 
कैसे खुद को बेसहारा बना लिया उसने,

ए-दीप खुदा की रहमत का 
वो बारबार जिक्र किया करती थी,
आज उस खुदा को भी ठुकरा दिया उसने,

अपनी सच्ची मोहब्ब्त को भुला दिया उसने..
......................................................

~कुलदीप सभ्रवाल

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