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शहर को रवाना हो गए



वो गाँव से निकलकर 
शहर को रवाना हो गए,,
देखते ही देखते बहुत सी ग़जलों का
अफसाना हो गए,,


खुद को महफूज़ समझ कर
बडा इतराते थे
पर न जाने क्यूँ आज खुद मैखाना हो गए,,
वो गाँव से निकलकर 
शहर को रवाना हो गए,,

सुनने लगें है दर्द भरे नगमे
और लगता है ऐसे जैसे
उदासी के नगमों का जमाना हो गए,,
वो गाँव से निकलकर 
शहर को रवाना हो गए,,

बिताने लगे हैं 
जिंदगी को ऐसे
जैसे प्यार का ताजमहल 
कोई पुराना हो गए,,
वो गाँव से निकलकर 
शहर को रवाना हो गए,,

~कुलदीप सभ्रवाल


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