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दो गज जमीं

दो गज जमीं 



ए-मुसाफ़िर मुझसे मत पुछ उसके बारे में
अगर पुछना है तो इन फिजाओं से पुछ
उस खुदा के बारे में,,

महत्वहीन लगता था शायद तुझे ये जंगल
अब पुछने ही लगा है तो फिर
उन निर्दोष जानवरों से पुछ इस जंगल के बारे में,,

करके बरबाद समंदर का समंदर
सुखे दरिया से क्या पुछता है
अगर पुछना ही है तो उस आसमां से पुछ 
पानी के बारे में,,

हर सीमा को लांघ कर
पेड़-पौधे पहाड़ों से शिकायत किस बात की
अब पुछने ही लगा है तो फिर खुद से पुछ
अपनी बेशरम हरकतों के बारे में,,

इन चलते फिरते इंसानो से क्या उम्मीद 
ये तो शुन्य हो चुके हैं
अगर ज्यादा ही तडफ है ए-दीप जानने की
तो फिर इन मुर्दों से पुछ दो गज जमीं के बारे में,,

ए-मुसाफ़िर मुझसे मत पुछ उसके बारे में
अगर पुछना है तो इन फिजाओं से पुछ
उस खुदा के बारे में,,

~कुलदीप सभ्रवाल

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