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हाल-ए-जिंदगी


जब दिल ये मेरा गम-ए-जुदाई मे रोने लगा,
यारों,

पत्थर को भी उस वक्त "दर्द" होने लगा,
यारों,

ये काली रातें भी जोर-जोर से मुस्कुराती रही,
यारों,

अब हाल-ए-जिंदगी किस-किस को सुनाते,
वो हमें तनहा देखकर 
"खुदा" भी पास बिस्तर लगा कर सोने लगा,
यारों...!

~कुलदीप सभ्रवाल

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