जो बुझा दे सदियों से प्यासे इन लबों कि प्यास
ऐसा एक जाम चाहिए..
लोग कहने लगे है
बिना मतलब के कोई काम होता नहीं
अब दिल जिद पे अढ्डा है
इसे बे मतलब परस्त इंसान चाहिए..
इन आँखों को अब आराम चाहिए
ख़तों पर ख़त लिखता रहा हूँ
मगर कभी ठिकाने पर पहुंचा भी है या नहीं
इसका अब फरमान चाहिए..
इन आँखों को अब आराम चाहिए
दवा दारू सब करके है देख लिया
ए-जान के मालिक एक बार आके मिल जा
हमें तो तेरे आंचल कि छाव चाहिए..
इन आँखों को अब आराम चाहिए
विरानीयो से तनहाइयों से भर गई है जिंदगी
जो दे सुकून इस जिस्म-ए-नश्वर को
ऐसी कोई शाम चाहिए..
इन आँखों को अब आराम चाहिए
वक्त बदलता रहा है पल-पल
और हर वक्त अपनी पहचान खो रहा हूँ
जो लोटादे मेरी पहचान ऐसा एक जहां चाहिए..
इन आँखों को अब आराम चाहिए
ए-दीप जो तु खुद को सिकंदर समझकर बैठा है
ये दुनिया की सच्चाई नहीं
मुझे लगता है तुझे भी सच्चाई से वाकिफ होना चाहिए..
इन आँखों को अब आराम चाहिए
जो बुझा दे सदियों से प्यासे इन लबों कि प्यास
ऐसा कोई जाम चाहिए..
-कुलदीप सभ्रवाल◆◆◆
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