वा बैठी डोल पै बुंदा कि आस लगाये
खेत मै भ्रथार हल जोड रहा
वा रोटी लाई बनाये
वा बैठगी डोल पै बुंदा कि आस लगाये,,
पाटया होया सुट देखकर बोली
एक सुट मेरा बनवा दे
अर एक धोती कुरता खुद का ले सिलवाये
वा बैठी डोल पै बुंदा कि आस लगाये,,
हाथां कि लकिर उजडगी
पैरां कि आंगली ऊपर नीचें न मुडगी
अर वा फेर भी रहे कमाये
वा बैठी डोल पै बुंदा कि आस लगाये,,
महामारी का दौर है चल रहा
कई दिना त बेटे कै बुखार ना उतर रहा
अर वा ठण्डी पाट्टी माथे पै रही लगाये,,
बैठी डोल पै बुंदा कि आस लगाये
रै दीप गरीबां न गरीबी खा गई
रेहंदी-खुंदी कसर सरकार दिखा गई
अर वा इतणे माडे टाइम में भी है मुस्कूराये
वा बैठी डोल पै बुंदा कि आस लगाये,,
~कुलदीप सभ्रवाल
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