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कमबख़्त राजनीति

कमबख़्त इस राजनीति ने सबको तोड रखा है
डर के मारे किसी ने ओढ रखी है चादर
तो किसी ने कंबल ओढ रखा है..
कमबख़्त इस राजनीति ने सबको तोड रखा है

बडे-बडे मेहल बना कर खुद तो आराम से रहते हैं
लेकिन हर मेहनत करने वाले का 
इन्होंने खून निचोड रखा है..
कमबख़्त इस राजनीति ने सबको तोड रखा है

मिलती नहीं किसी को यहां दो वक्त की रोटी
मगर इन जालिमों ने कई पुश्तों का जोड रखा है..
कमबख़्त इस राजनीति ने सबको तोड रखा है

मेरे देश का युवा ये किधर जा रहा है
कोई बेच रहा है शराब तो कोई समेक ने जोड रखा है..
कमबख़्त इस राजनीति ने सबको तोड रखा है

बेसहारा बना दिया है हर इंसान को
ए-दीप अब लगता है ऐसे
जैसे सोची-समझी साजिश से किसी महामारी को छोड रखा है..
कमबख़्त इस राजनीति ने सबको तोड रखा है

~कुलदीप सभ्रवाल

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