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दोस्ती का जमाना


दोस्ती का जमाना

अफसाना लिख रहा हूँ,
मैंने जिया है दोस्तों के साथ जो जमाना वो जमाना लिख रहा हूँ,

हंसते थे गाते थे,
तोड़कर खेतों से जामुन भाग जाते थे,
जिन शरारतों के कारण खाई थी जो मार,
उस मार के तराने लिख रहा हूँ,
मैंने जिया है दोस्तों के साथ जो जमाना वो जमाना लिख रहा हूँ,

खेलने का शोक था,
घर के बहार एक बहोत बडा चोंक था,
टाईम टेबल बनाते थे,
जहा सब मेरे दोस्त खेलने को आते थे,
बस उसी दौर के परवाने लिख रहा हूँ,
मैंने जिया है दोस्तों के साथ जो जमाना वो जमाना लिख रहा हूँ,

सुबह-सुबह उठ जाते थे, 
एक-दुसरे को आवाज लगाते थे,
स्कूल में सब मिलकर ही जाते थे,
न कोई भेद भाव था ऐसा मेरा (लोहारी राघो) गाँव था,
जिसके मैं फसाने लिख रहा हूँ,
मैंने जिया है दोस्तों के साथ जो जमाना वो जमाना लिख रहा हूँ,

हर तरफ मासूमियत कि हरियाली थी,
मेरे दोस्तों कि तो दुनिया दीवानी थी,
ऐसे ही दोस्तों कि दोस्ती कि यादों से भरे हुए,
तहखाने लिख रहा हूँ,
मैंने जिया है दोस्तों के साथ जो जमाना वो जमाना लिख रहा हूँ,

दिल कि दुरिया पल मे भुलाते थे,
लेकर मुहँ मे अंगुठा सारे गिले सिकवे मिटाते थे,
देख कर हमारी दोस्ती,
दुश्मन भी दोस्ती के लिए हाथ मिलाते थे,
ऐसी ही प्यार भरी खूबसूरती के नजराने लिख रहा हूँ,
मैंने जिया है दोस्तों के साथ जो जमाना वो जमाना लिख रहा हूँ,,,,

~कुलदीप सभ्रवाल

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