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जमीं पर


   जमीं पर 

रखा नहीं कदम अभी तक जिसनें जमीं पर ,
होने लगी हैं साजिश उसके लिए, 
जमीं पर,,,

हैवानियत का दोर है, 
हर मासूम की वालिद अब लगने लगी कमजोर है,
 सोचने को मजबूर है इक नन्ही सी परी को लाऊं या ना लाऊं, जमीं पर....

घर का आंगन विरान है, 
एक लडके कि चाह ने देखो मारी कितनी संतान है, 
हाले समाज देखकर जन्म लेने के नाम से भी डरने लगी है 
ये मासूम सी जान, 
जमीं पर...

पहले भी कितना सताया है, 
कभी माँ कि कोख में मारा तो कभी लेकर सती का नाम जलती आग मे बैठाया है, 
अब बताओं मुझे में क्यों आऊं इस, 
जमीं पर...

औरत ने तुझे पैदा किया औरत ने ही तुझे पाला है,
खुद की औरत को औरत समझा, 
मगर दूसरों की पर तुने क्यों किच्चड़ उछाला है, 
अब कोई अपना सा नहीं लगता है, 
इस जमीं पर....
       
           ~कुलदीप सभ्रवाल


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