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गंगा में लाश


जिंदगी की चाहत ने एक और मौत करदी
मेरे देश की हकुमत ने 
गंगा में लाशों को तैरने के लिए 
देखो कितनी राहत है करदी..

कमबख़्त दो वक्त का दाना-पानी नसीब होता नहीं
इक नादान परिंदें को
और देखो इस हकुमत ने नशा-ए-शराब के लिए कितनी 
छुट है करदी..

आई है तबाही बनकर एक पागल सी बिमारी
जिसनें बडे-बडे अक्लमंदों कि देखते ही देखते सारी 
नशे ब्लॉक है करदी..

गुनाहों का रास्ता चुनकर भी 
बने बैठे थे बहोत से लोग पुजारी
अब देखलो सब आँखों से 
कैसे प्रभु ने उनकी आज बोलती बंद है करदी..

गुजरा जमाना याद आ गया सबको
लेकिन जो गुजर गया था जमाना उसने ऐसी कौनसी
गलती करदी..
जो मेरे वतन कि आज इतनी बुरी हालत कुछ बंदों ने करदी..

कहीं बिक रही है इंसानियत तो 
कहीं बिक रही है समाज सेवको कि वर्दी..

मानते थे जिनको सदियों से खुदा का रूप
क्या वजह रही होगी 
जो उनकी इस महामारी ने इमेज इतनी डाऊन करदी..

जिंदगी की चाहत ने एक और मौत करदी
मेरे देश की हकुमत ने 
गंगा में लाशों को तैरने के लिए 
देखो कितनी राहत है करदी..

~कुलदीप सभ्रवाल



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