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नफ़रतों-के-शहर


नफ़रतों-के-शहर





नफ़रतों-के-शहर




नफ़रतों के शहर में प्यार बेच आया मैं,
बस इक तेरा घर न मिला सारा शहर
घुम आया मैं,,

छुपने-छुपाने का हुनर तुमसे बेहतर कौन जाने
तुम्हारे इक तलक दिदार के लिए
सारी दुलहनों को घुंघट उठाकर 
देख आया मैं,,

किसी की शिसकिया बनने से अच्छा था
किसी की हिचकियाँ बन जाते तुम
थोड़ी सी प्यास के चक्कर में 
पुरा समंदर देख आया मैं,,

बरसात का मौसम शुरू होने वाला था
लेकिन इससे पहले ही आँखों के अश्कों से
मेरा गाँव डुबो आया मैं,,

मुझे तो बदला-बदला सा लगता है तु
इसिलिए बगैर दरवाजा खटखटाये
बिना आवाज दिये ही
तुम्हारी चौखट से लौट आया मैं,,

नफ़रतों के शहर में प्यार बेच आया मैं,
बस इक तेरा घर न मिला सारा शहर
घुम आया मैं.!!

      ~कुलदीप सभ्रवाल

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