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शराफत कि जिंदगी


शराफत जिंदगी जैसे गुजरा हुआ कल हो गई है
उसने जिस-जिस झोपड़ी को छुआ था
वो तो आज महल हो गई है,

मोहब्बत के दुश्मनों से भरी है ये दुनिया,
इन दुश्मनों ने जहां-जहां आग लगाई,
वो वहां-वहां शीतल जल हो गई है,
ऐसा लगता है जैसे शराफत जिंदगी गुजरा हुआ 
कल हो गई है,

लहू लुहान हो रही है तबीयत अब सबकी,
पता नहीं ऐसे हैवानियत के दौर में,
इस तबीयत कि दवा कहां गुम हो गई है,
ऐसा लगता है जैसे शराफत जिंदगी गुजरा हुआ 
कल हो गई है,

लाशों के ढेर पर बैठने लगा हूँ,
हाँ आज-कल मैं कुछ ज्यादा ही सोचने लगा हूँ,
क्यूँ ये जिंदगी इतनी सस्ती हो गई है,
पता नहीं क्यूँ लगता है ऐसे शराफत जिंदगी 
जैसे गुजरा हुआ कल हो गई है,

इंसान-इंसान-इंसान शायद सूना -सूना सा नाम है,
मारो, मार दो, मार दिया, अब बस यही रह गया काम है,
न जाने वो भगवान के बंदों कि नस्ल कहां गुम हो गई,

अबतो बस ऐसा लगता है,
जैसे वो शराफत जिंदगी गुजरा हुआ कल हो गई है,

~कुलदीप सभ्रवाल

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