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एक दीप



एक दीप जलाकर आया हूं,
उस भगवान के आगे,

एक आस बंधा कर आया हूं,
उस खुशबू से कि कभी मेरे आंगन में भी आकर महके,

एक राज बता कर आया हूं,
उस परवाने को कि कभी शमा को न ताके,

एक हार पहना कर आया हूं,
उस जीत को कि कभी मेरे दोस्तों को न डाटें,

एक मसला सुलझा कर आया हूं,
उस दुश्मन से जाके 
कि कभी मेरे दोस्तों के आये न आगे,

एक जान बचाकर आया हूं,
उस पंछी कि जो बैठ गया था नादानी मे 
सरहद पार जाके,

एक निशान मिटाकर आया हूं,
उस घर मे दीवार का जो दो भाईयों ने 
खींच लिया था आवेश में आके,

एक दीप जलाकर आया हूं
उस भगवान के आगे,
कि चारों दिशाओं में भाईचारा और प्रेम की
अलख जलादे,,

~कुलदीप सभ्रवाल


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