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दो पन्नों कि जिंदगी


यारो दो पन्नों कि है जिंदगी मेरी,

अब तुम ही बताओं क्या-क्या बतलाऊं मैं,

और क्या-क्या छिपाऊं तुमसे मैं,

सिर्फ दो पन्नों कि तो है ये जिंदगी मेरी,


थोड़ी बहुत वफाएं है इसमें,

कुछ मंजिल और कुछ रास्ते बने बनाए है इसमें,

बस दो पन्नों कि तो है ये जिंदगी मेरी,


कुछ अपनों की यादें है इसमें,

और कुछ कसमे तो कुछ वादे है इसमें,

बस दो ही पन्नों कि तो है ये जिंदगी मेरी,


न धन दौलत थी मेरे पास,

और न ही जमीन जायदाद थी मेरे पास,

कुछ रखे थे सम्भाल कर अपने और उनके खत ही थे बस मेरे पास,

इसलिए तो कहता हूं मेरे दोस्त 

सिर्फ दो पन्नों की तो है ये जिंदगी मेरी,


कुछ अल्फ़ाज़-ए-दिल बयान किया है मैंने,

कुछ दर्द-ए-दिल सहा है मैंने,

और कभी न पुरी होने वाली कहानी है मेरी,

ए मेरे दोस्त दो पन्नों कि तो है जिंदगी ये मेरी,


कुछ बारिश के मौसम में चलने वाली

कागज की कश्ती है इसमें,

और थोड़ी सी बचपन वाली मस्ती है इसमें,

ए मेरे दोस्त सिर्फ़ दो पन्नों कि जिंदगी है ये मेरी,


थोड़ी सी नाराजगी है इसमें,

और थोड़ी बहोत कला बाजगी है इसमें,

ए मेरे दोस्त जो कुछ भी है इन पन्नों में सब सच्चाई और सादगी है इसमें 

मेरी इस दो पन्नों कि जिंदगी में,,,


~कुलदीप सभ्रवाल






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