पेड़ की व्यथा
★हाँ मैं एक पेड़ हूँ
जिसकी शीतल छाया में बैठकर सबने बेहद आनंद लिया,
मगर बदले में कुल्हाड़ी,गंडासी से मेरे पत्तों को शाखाओं और टहनियों को कुछ इस तरह से नोचा खरोंचा गया
जैसे मैंने किसी को प्राणघातक तीर मारा हो,
★मेरे द्वारा दी जाने वाली ऑक्सीजन को बड़े ही निष्ठावान
तरिके से ग्रहण किया गया,
और मुझे दिन भर धुल-मिट्टी दुषित हवा में कुछ इस तरह से नहलाया गया,
जैसे मैंने कोई घोर अपराध किया हो,
★हाँ मैं एक पेड़ हूँ दुख,दर्द,तकलीफ मुझे भी होती है
बिल्कुल उसी तरह जिस तरह आपको होती है,
मैं भी तुम्हारी तरह अपने फल-फूल और बीजों से अपने वंश कि अलग पहचान बनाने के साथ-साथ उसे लम्बे समय तक इस नीले ग्रह पर फलते-फूलते हुए देखना चाहता हूँ,
लेकिन तुम ठहरे मानव जाति के गुणवान लोग जिन्हें ये हरगिज़ मंजूर नहीं,
निकल पडते हो सुबह ही अपने घरों से मेरे वंश को उजाडऩे के लिए,
★हाँ मैं एक पेड़ हूँ
तुम्हारी हर जरूरत को पूरा करने के लिए दिन-रात लगा रहता हूँ,
ताकि तुम भी कभी होश में आओ और मुझे काटने की बजाए मेरी सम्भाल करो और मेरी संख्या में बढ़ोतरी करो सुबह-शाम मुझे पानी देकर अपने लिए तथा हर प्राणी वर्ग के लिए हमारे द्वारा दी गई शुद्ध हवा का हमेशा आनंद ले,
वैसे तो आपके अपने जीवन में अनेकों घटनाएं घटती रहती है मगर जो घटना हाल ही में कोरोना के दौर को लेकर घटी है उस दौर से तुम्हें अवगत कराना चाहूंगा,
जब तुम दर-ब-दर अपने बिबी,बच्चों,माँ-बाप को लेकर ऑक्सीजन दिलाने के लिए इधर-उधर भटक रहे थे,
अगर समय रहते हमारी कीमत जान ली होती तो ऐसा हम कभी नहीं होने देते,
मगर तुम ठहरे दौलत मंद इंसान जिन्हें अभी भी हमारी किमत का एहसास नहीं है,
लेकिन बेहद जल्द आपकी आने वाली पिढ़ियों को
इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा,
अब भी समय है ए-मानव हमारी किमत को जान लो
आज तुम हमारी ज़रा सी सम्भाल करलो कल हम आपको
सम्भाल लेंगे,
और ऐसा दौर कभी नहीं आने देंगे,
बाकी आपके हाथों में हमारा और तुम्हारा भविष्य पैदा होने के सपने देख सकता है या फिर गोद में ही दम तोड़ देगा ये आने वाला समय हमें अच्छे से बता देगा.।
◆पेड़ लगाओं अपनी और अपने सपनों की जान बचाओं◆
~कुलदीप सभ्रवाल◆◆◆
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