तुम्हारी तस्वीर को देख कर रो लेते हैं,
हम आज-कल खुली आँखों से भी सो लेते हैं,
बड़ा बेताब रहते हैं तुम्हारी यादों को लेकर,
कुछ अधूरी रह गई कसमों वादों को लेकर,
दिन तो तनहा गुजर जाता है,
मगर वो आफ़ताब रात को अक्सर पुछ लेता है,
मेरे तुम्हारे प्रति जज्बातों को लेकर,
सोचा तो यही था कि तुम बिन जी ना सकेंगे,
ये गमें-ए-जुदाई सह ना सकेंगे,
लेकिन जब देखी तेरे चेहरे पर प्यारी सी मुस्कान तो,
हमने भी जहर दे दिया अपने ख्यालातों को लेकर,
अब दिल ये मेरा मुझसे ही सवाल करता है,
भला तू क्यूँ उसका इंतजार करता है,
जिसे ज़रा सा भी फर्क नहीं पड़ता है
तुम्हारे इस दर्द भरे इतिहास को लेकर,,,
~कुलदीप सभ्रवाल
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